आपको केवल अपने त्रिनेत्र (भृकुटी) पर नेत्र बंद करके ध्यान लगाना है। केवल उस बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करना है और कोई मंत्र जपे बिना। कोई भी विचार या दृष्य दिखाई दे तो किसी कल्पना की आवष्यकता नही है। केवल साक्षी भाव होकर देखना है क्योंकि मन लगातार विष्लेषण और निर्णय करता है। एक वानर की तरह मन चंचलता के कारण ध्यान से भटकता है। यदि आप ध्यान को कठिन समझते हैं तो यह कठिन लगेगा, परन्तु यदि आप संकल्प लेते हैं कि आप ध्यान करेगे तो आप पायेगें कि आप इसे कर सकते हैं और यह आसान भी है। यदि आप शान्त होकर ध्यान लगायें तो उचित समय में मन एकाग्र एवं शु़द्ध होकर अंतर्मुखी हो जायेगा।यही वो पल है जब समाधि की अवस्था में आकर अपने तत्व अथवा आत्मा को अनुभव कर सकते हैं।यदि सांसारिक मनुष्य भी यह ध्यान 20 मिनट से एक घंटे करता है तो वह भय एवं उलझन से मुक्ति पा सकता है। हर किसी को आज शान्ति, ख़ुशी एवं आनंद की तलाश है। आपसी मतभेद और अविश्वास के कारण अनेक कठिनाइयाँ पैदा हो गई हैं। यदि सभी लोग मन को नियंत्रित करने का अभ्यास करें तो मानवीय मूल्यों को संभाला जा सकता है। एक दूसरे पर विश्वास, लिहाज़, प्रेम और आदर से सद्भावना पूर्ण जीवन निर्वाह किया जा सकता है ।

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